पूर्व विधायक कुणाल षाडंगी ने आंदोलनकारियों को पेंशन नहीं दिए जाने का मामला उठाया।

भाजपा प्रदेश प्रवक्ता सह पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी ने झारखण्ड आंदोलनकारियों को विगत पांच माह से पेंशन नहीं दिए जाने का मामला उठाया।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के पास मुख्यमंत्री व मंत्रियों के लिए कोरोना वायरस के संक्रमण काल में नई गाड़ियों पर फ़िज़ूलख़र्ची के लिए पैसे तो हैं लेकिन राज्य निर्माताओं के लिए नहीं ! उन्होनें कहा कि भारतीय जनता पार्टी, सीधे तौर पर माननीय मुख्यमंत्री से पूछना चाहती है कि हर मंच पर आंदोलनकारी की आवाज़ बनने का दावा करने वाली यह सरकार आख़िर आंदोलनकारियों को पेंशन से वंचित क्यों रख रही है? सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा अपने आपको आंदोलन की उपज बताती है तो आंदोलनकारियों के साथ ही सौतेला व्यवहार क्यों? लॉकडाउन के समय आर्थिक चुनौतियों से हर व्यक्ति परेशान है। ऐसे समय में 5 हज़ार रुपये महीना या 3 हज़ार रुपये महीना की पेंशन राशि से अपना जीवन काट रहे आंदोलनकारियों के परिवार के दुख-दर्द को सुनने वाला कोई नहीं। राज्य के लगभग 5000 आंदोलनकारियों का पेंशन पिछले पाँच महीने से बंद है, वे पत्राचार समेत सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाकर थक चुके हैं। राज्य के झारखंड वनांचल आंदोलनकारी चिन्हीतिकरण आयोग की सिफ़ारिश के बाद राज्य सरकार पेंशन का भुगतान करती है। इसके लिए वार्षिक 18 करोड़ रूपये का प्रावधान है। श्री षाड़ंगी ने कहा कि जिन लोगों के बलिदान, त्याग व संघर्ष से झारखंड अलग राज्य बना उनकी उपेक्षा हो रही है और सत्ताधारी दल के लोग विभिन्न पदों पर आकर सत्ता का सुख भोग रहे हैं, उन्हें आज आंदोलनकारियों की तनिक भी चिंता नहीं है। ऐसे मामलों पर राज्य सरकार को शर्म आनी चाहिए। आगे कहा कि भारतीय जनता पार्टी राज्य सरकार से माँग करती है कि अविलंब आंदोलनकारियों की पेंशन का भुगतान करे।

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