साहित्यकार सह समाज सेवी सुनील कुमार दे और शिक्षा विद सह झारखंड साहित्य संस्कृति परिसद के सचिव शंकर चंद्र गोप को माताजी आश्रम के ट्रस्टी बोर्ड के सदश्य बनाये गए

श्री श्री योगेश्वरी आनंदमयी सेवा प्रतिष्ठान माताजी आश्रम हाता झारखंड के एक गौरव शाली एक धार्मिक धरोहर ही नहीं बल्कि एक सिद्ध पीठ भी है।इस धार्मिक धरोहर की संस्थापिका भगवान रामकृष्ण परमहंस देव जी की भक्त शिष्या महान साधिका श्रीश्री योगेश्वरी आनंदमयी माताजी है।इस आश्रम की स्थापना सन 1938 को हुई है।चाईबासा के आशुतोष हुई के परिवार ने हाता में जमीन खरीदकर माताजी के लिये आश्रम बना दी थी।आज आश्रम का उम्र 83 बर्ष है।योगेश्वरी मा का देहांत सन 1958 को हुई।उसके बाद योगेश्वरी मा की संन्यासी शिष्या रानुमा को आश्रम का द्वितीय माताजी बनाई गई।सन 1958 में योगेश्वरी मा के देहांत के बाद हुई परिवार ने सन 1959 के 11 फरवरी को कोलकता हाई कोर्ट में एक ट्रस्ट बनाकर आश्रम को निबंधन कर दिया।उस समय आश्रम के कुल 5 ट्रस्टी थे यथा,,,हरेंद्र नाथ हुई,संतोष कुमार हुई,श्रीमती रेणु सेन गुप्ता, डॉ भवानी प्रसाद सेन और शंकर बगति। इनमे से कोई भी ट्रस्टी जीवित नहीं है लेकिन समय समय पर ट्रस्टी की नियुक्ति किया गया।अभी कुल 9 ट्रस्टी थे यथा,,,हीरालाल दे,रघुनंदन बनर्जी,छाया सरकार(मृत),जयदेव मुखर्जी, लखी चरण कुंडू,रबीन दे(अबसर प्राप्त),परिमल चटर्जी, आनंद सेन और राजित हुई।बर्तमान ट्रस्टी बोर्ड के अध्यक्ष रघुनंदन बनर्जी है।छाया सरकार और रबीन दे के जगह पर साहित्यकार व समाज सेबी सुनील कुमार दे तथा शिक्षा विद व झारखंड साहित्य संस्कृति परिसद के सचिव शंकर चंद्र गोप को माताजी आश्रम ट्रस्टी बोर्ड के नये सदश्य के रूप में नियुक्ति की गई यह जानकारी ट्रस्टी बोर्ड के अध्यक्ष रघुनंदन बनर्जी ने दी।
सुनील कुमार दे रानुमा के समय काल से अर्थात 1970 साल से आश्रम के साथ जुड़े हुए है।श्री दे संचालन समिति में कभी सदश्य,कभी कोशाध्यक्ष, कभी सचिव पद पर आश्रम की सेबा की।बिगत 30 साल से श्री दे ने आश्रम को संचालन कर रहे थे।बर्तमान कमिटी में सलाहकार के रूप में थे।
शंकर चंद्र गोप जी भी 30 साल से ऊपर आश्रम के साथ एक सक्रिय भक्तऔर सदश्य के रूप में जुड़े हुए है।बर्तमान समय मे आश्रम कमिटी के मुख्य सलाहकार थे।
श्री दे और श्री गोप जी को ट्रस्टी बनाने से ट्रस्टी बोर्ड अभी मजबूत हो गया है यह आश्रम के भक्तों की राय है।